कहीं ज़िन्दगी के उतार चढाव में खो सा गया हूँ मैं
इस रौशन, जगमगाती , चकाचौंध कर देने वाली दोपहरी में सो सा गया हूँ मैं
अब पुराने ख्वाब दिखाई नहीं पड़ते हैं
और खून की गरमाई भी कम महसूस होती है
बेचैनी भी अब बस कभी कभी ही मिलती है की भूली हुई कगार पर
जीने के मकसद को ढूँढने के मकसद को कहीं डुबो सा गया हूँ मैं
कहीं ज़िन्दगी के उतार चढाव में खो सा गया हूँ मैं
सुबह उठने पर एह्सास होता है की अध्-सोयी आँखें तो कब की खुल चुकी हैं
और चेहरे पर रहने वाली रौनक तो कई साल पहले ही धुल चुकी है
अन्दर बैठे जिद्दी बालक को सुला चूका हूँ मैं
कहीं ज़िन्दगी के उतार चढाव में खो सा गया हूँ मैं
इस रौशन, जगमगाती , चकाचौंध कर देने वाली दोपहरी में सो सा गया हूँ मैं
अब पुराने ख्वाब दिखाई नहीं पड़ते हैं
और खून की गरमाई भी कम महसूस होती है
बेचैनी भी अब बस कभी कभी ही मिलती है की भूली हुई कगार पर
जीने के मकसद को ढूँढने के मकसद को कहीं डुबो सा गया हूँ मैं
कहीं ज़िन्दगी के उतार चढाव में खो सा गया हूँ मैं
सुबह उठने पर एह्सास होता है की अध्-सोयी आँखें तो कब की खुल चुकी हैं
और चेहरे पर रहने वाली रौनक तो कई साल पहले ही धुल चुकी है
अन्दर बैठे जिद्दी बालक को सुला चूका हूँ मैं
कहीं ज़िन्दगी के उतार चढाव में खो सा गया हूँ मैं
1 comment:
Samajh nahi paya yaar, par lag raha hai bhadiya hai :)
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